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‘क्या वास्तव में अकबर उतना ही महान था जितना स्कूल की किताबों में लिखा गया है?’ पढ़ें लोगों ने क्या दिया जवाब


जब से केंद्र सरकार या राज्य सरकारों ने देश की अलग-अलग चीजों के नाम बदलना शुरू किए हैं, तब से एक विवाद खड़ा होते देखा जा सकता है जिसमें नाम बदलने के पीछे की मंशा पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. कभी इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रख दिया गया तो कभी दिल्ली की औरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया. इन सबके बाद राजनीतिक पार्टियों ने दिल्ली की अकबर रोड का भी नाम बदलने की मांग कर दी है. कुछ वक्त पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अकबर (Quora question related to Akbar the great) को लेकर ऐसा सवाल किया गया जिसपर लोगों ने अलग-अलग राय दी.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कोरा एक ऐसा फोरम है जहां आम लोग अपने सवाल करते हैं और आम लोग ही जवाब भी देते हैं. कुछ वक्त पहले किसी ने एक सवाल पूछा- “क्या वास्तव में अकबर उतना ही महान था जितना हमारे स्कूल की किताबों में लिखा गया है?” (Was Akbar really great) इसके बाद जवाब देने वाले कूद आए और अपने-अपने हिसाब से उत्तर (Users answer question about Akbar) देने लगे. आपको बता दें कि ये न्यूज18 हिन्दी इन जवाबों के सच होने की पुष्टि नहीं करता है.

नौरोज मेले का शख्स ने किया जिक्र
एक ने कहा- “नहीं! अकबर महान नहीं था बल्कि एक कट्टर मुसलमान और हिन्दू विरोधी शासक था जिसे सेक्युलर पार्टियों के दबाव में छिपाया गया” वहीं दूसरे ने मीना बजार के नौरोज मेले का भी जिक्र किया. इस मेले में मुगल पुरुषों के लिए महिलाएं उपलब्ध कराई जाती थीं. एक बार अकबर नौरोज के मेले में बुरका पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर रहा था जब उसकी नजर एक महिला पर गई, जो किरण देवी थीं. शख्स ने कहानी में बताया कि अकबर उनकी खूबसूरती पर मोहित हो गया और अपने साथ एक रात बिताने की पेशकश की. “किरण देवी ने अपना परिचय पृथ्वीराज राठौर की पत्नी के रूप में दिया, जो अकबर के नौ रत्नों में से एक थे. फिर भी अकबर अपनी वासना को नियंत्रित नहीं कर सका. इसके बाद किरण ने पलटवार किया और उनके सामने खंजर तान दिया. अकबर इस बत से डर गया और माफी मांगने लगा. किरण देवी ने एक शर्त रखी कि नवरोज मेला फिर कभी नहीं होगा. अकबर इस पर सहमत हो गया और इस तरह उसने उसे माफ कर दिया. अकबर अपने चेहरे पर खामोशी और शर्म के साथ चला गया. जो पुरुष महिलाओं का सम्मान नहीं करता वह कभी महान नहीं हो सकता.”

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चित्तौड़गढ़ की चर्चा की
अवधेश नाम के एक शख्स ने कहा- “ये सवाल तो आपको चित्तौड़गढ़ के किले से स्वयं जाकर ही पूछना चाहिए. मैं आपसे कहूंगा कि एक बार आप चित्तौड़ आयें और ख़ुद ये सवाल पूछें चित्तौड़ के किले से. 23 फरवरी 1568 का दिन चित्तौड़ के 8000 राजपूत सैनिक अपने किले की रक्षा करते हुऐ वीरगति को प्राप्त हुए और 300 से ज्यादा महिलाओं ने जौहर कर लिया था. अक़बर किले में घुस गया था और कब्जा कर लिया था तब उसने अपने सैनिकों को मासूमों से बदला लेने का आदेश दिया जिसमें आम इंसान महिला बच्चे बुजुर्ग किसान थे जो किले में रहते थे.”

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